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कौन तय करता चरित्र

शीर्षक -  कौन तय करता चरित्र?

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कितने  सांचों में
 ढलता गढ़ता
कितनी तरह से 
बनता बिगड़ता
जीवन के ताने 
व बाने में बुना 
स्त्रीत्व का चरित्र
मां ने कशीदे जैसे
काढे मन पर बंधन
संस्कारों के नाम
पिता ने खींच दिए 
मर्यादा के मानचित्र
कौन विधाता बन
तय करता भाग्य
समाज की परंपरा या
 क्षुद्र कुत्सित पाशों में
बंधी मानसिकता 
क्यूं रोक देती वृथा
अनंत संभावनाओं को
और अंतहीन उड़ानों को
वो क्यूं नाप नहीं सकती
अस्तित्व की मुस्कानों को
को वो क्यूं जी नहीं सकती
सिर्फ इसलिए कि
 गर्भ में ही गढ़ा जाता
छठी के दिन लिखा जाता
 बहुत सीमित से दायरों में  
स्त्रीत्व का संकुचित अर्थ
अगर वो उन्मुक्त प्रेम 
के द्वार खोल लय हो
जाती अपने अस्तित्व में
 अस्मिता के प्रवाह में
बह जाती सरिता सी
 प्रश्नचिन्ह क्यूं लग जाते ?
क्या समाज की बेड़ियां 
तय करती है चरित्रता
या प्रेम तय करता है
स्त्रैण चित्त की पवित्रता
या वो असीम संभावनाएं
जिसे लेकर वो पैदा होती है
कौन तय करता चरित्र ?


@मीनाक्षी कुमावत मीरा
#चरित्र








   13
21 Comments

Pawan kumar chauhan

09-Jul-2021 12:05 PM

बेहतरीन

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Renu Singh"Radhe "

09-Jul-2021 10:03 AM

बहुत सुंदर रचना

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Satendra Nath Choubey

09-Jul-2021 09:44 AM

अति सुन्दर। वास्तव में प्रथम आने लायक रचना। आपने एक नया शब्द गढ़ा है- 'चरित्रता।'

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Kumawat Meenakshi Meera

09-Jul-2021 09:45 AM

आभार sir ji

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